पृष्ठभूमि: रौलट एक्ट और जनाक्रोश
1919 में ब्रिटिश सरकार ने रौलट एक्ट पारित किया, जो बिना मुकदमे के गिरफ्तारी और नजरबंदी की अनुमति देता था। इस अधिनियम के विरोध में देशभर में आंदोलन शुरू हुए। अमृतसर में भी लोग शांतिपूर्ण ढंग से इस कानून का विरोध कर रहे थे।बैसाखी का दिन और जलियांवाला बाग
13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के अवसर पर, हजारों लोग जलियांवाला बाग में एकत्र हुए थे। यह सभा रौलट एक्ट के विरोध में आयोजित की गई थी। बाग चारों ओर से दीवारों से घिरा हुआ था, और इसमें प्रवेश और निकास के लिए केवल एक संकरा रास्ता था।जनरल डायर का आगमन और गोलीबारी
ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड डायर अपने सैनिकों के साथ बाग में पहुंचा और बिना किसी चेतावनी के भीड़ पर गोली चलाने का आदेश दिया। सैनिकों ने लगभग 10 मिनट तक लगातार गोलीबारी की, जब तक कि उनके पास गोलियां खत्म नहीं हो गईं। लोग भागने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन संकरे रास्ते और दीवारों के कारण वे फंस गए।हताहतों की संख्या और पीड़ा
ब्रिटिश सरकार के अनुसार, इस घटना में 379 लोग मारे गए और 1,200 से अधिक घायल हुए। हालांकि, भारतीय सूत्रों के अनुसार, मृतकों की संख्या 1,000 से अधिक थी। इस हत्याकांड ने पूरे देश को झकझोर दिया और ब्रिटिश शासन के खिलाफ आक्रोश को और बढ़ा दिया।प्रतिक्रिया और प्रभाव
स्वतंत्रता संग्राम पर प्रभाव
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को एक नई दिशा दी। लोगों में ब्रिटिश शासन के प्रति विश्वास समाप्त हो गया और स्वतंत्रता की मांग और तेज हो गई। यह घटना असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन जैसे आंदोलनों की प्रेरणा बनी।जलियांवाला बाग स्मारक
आज जलियांवाला बाग एक राष्ट्रीय स्मारक है, जहां हर साल लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देने आते हैं। यह स्थान हमें स्वतंत्रता संग्राम के बलिदानों की याद दिलाता है और प्रेरित करता है कि हम अपने देश की आज़ादी की कीमत को समझें और उसका सम्मान करें।जलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय इतिहास का एक काला अध्याय है, जिसने स्वतंत्रता संग्राम को नई ऊर्जा दी और ब्रिटिश शासन की क्रूरता को उजागर किया। यह घटना हमें यह सिखाती है कि स्वतंत्रता की कीमत बहुत बड़ी होती है और हमें अपने देश की आज़ादी की रक्षा के लिए सदैव सतर्क रहना चाहिए।
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