Hum Hindustani: भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में न्यायपालिका की भूमिका पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका के अधिकारों में हस्तक्षेप को लोकतंत्र के लिए खतरा बताया है। धनखड़ ने विशेष रूप से अनुच्छेद 142 के दुरुपयोग को "लोकतंत्र के खिलाफ परमाणु मिसाइल" करार दिया है, जो भारतीय संविधान की मूल भावना के विपरीत है।
धनखड़ का मुख्य तर्क
धनखड़ का मानना है कि कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका—इन तीनों स्तंभों के बीच स्पष्ट सीमाएं हैं, जिन्हें पार नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, "कार्यपालिका का कार्य केवल कार्यपालिका को ही करना चाहिए, जैसे कि विधायिका का कार्य विधायिका को और न्यायिक निर्णय न्यायपालिका को।" उनके अनुसार, न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका के कार्यों में हस्तक्षेप संविधान की भावना के विपरीत है।
अनुच्छेद 142 और न्यायिक सक्रियता
अनुच्छेद 142 भारतीय संविधान का एक विशेष प्रावधान है, जो सुप्रीम कोर्ट को "पूर्ण न्याय" सुनिश्चित करने के लिए व्यापक शक्तियाँ प्रदान करता है। हालांकि, धनखड़ का तर्क है कि इस अनुच्छेद का दुरुपयोग न्यायपालिका को एक "सुपर संसद" में बदल देता है, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
लोकतंत्र में संतुलन की आवश्यकता
धनखड़ ने इस बात पर भी जोर दिया कि लोकतंत्र की सफलता के लिए तीनों स्तंभों के बीच संतुलन और सहयोग आवश्यक है। उन्होंने कहा, "देश की सतत प्रगति के लिए कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका को सहयोगात्मक संवाद में संलग्न होना चाहिए, न कि टकरावपूर्ण दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।"
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